कौन होते है यक्ष व यक्षिणी?

Yakshini: तंत्र की मान्यता है इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। सभी लोकों के अलग-अलग देवी देवता हैं जो इन लोकों में रहते हैं । पृथ्वी से इन सभी लोकों की दूरी अलग-अलग है। मान्यता है नजदीकि लोक में रहने वाले देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं, क्योंकि लगातार ठीक दिशा और समय पर किसी मंत्र विशेष की साधना करने पर उन तक तरंगे जल्दी पहुंचती हैं। यही कारण कि यक्ष, अप्सरा, किन्नरी आदि की साधना जल्दी पूरी होती है, क्योंकि इनके लोक पृथ्वी से पास हैं।

कौन होते हैं यक्ष व यक्षिणी

यक्षिणी को शिव जी की दासिया भी कहा जाता है, यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है जादू की शक्ति। आदिकाल में प्रमुख रूप से ये रहस्यमय जातियां थीं। देव,दैत्य,दानव, राक्षस,यक्ष,गंधर्व,अप्सराएं, पिशाच,किन्नर, वानर, रीझ,भल्ल, किरात, नाग आदि। ये सभी मानवों से कुछ अलग थे। इन सभी के पास रहस्यमय ताकत होती थी और ये सभी मानवों की किसी न किसी रूप में मदद करते थे। देवताओं के बाद देवीय शक्तियों के मामले में यक्ष का ही नंबर आता है।

कहते हैं कि यक्षिणियां सकारात्मक शक्तियां हैं तो पिशाचिनियां नकारात्मक। बहुत से लोग यक्षिणियों को भी किसी भूत-प्रेतनी की तरह मानते हैं, लेकिन यह सच नहीं है। रावण का सौतेला भाई कुबेर एक यक्ष था, जबकि रावण एक राक्षस। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा की दो पत्नियां थीं इलविला और कैकसी। इलविला से कुबेर और कैकसी से रावण, विभीषण, कुंभकर्ण का जन्म हुआ। इलविला यक्ष जाति से थीं तो कैकसी राक्षस।

जिस तरह प्रमुख 33 देवता होते हैं, उसी तरह 64 यक्ष और यक्षिणियां भी होते हैं। इनमे से निम्न 8 यक्षिणियां प्रमुख मानी जाती है

  1. सुर सुन्दरी यक्षिणी
  2. मनोहारिणी यक्षिणी
  3. कनकावती यक्षिणी
  4. कामेश्वरी यक्षिणी
  5. रतिप्रिया यक्षिणी
  6. पद्मिनी यक्षिणी
  7. नटी यक्षिणी
  8. अनुरागिणी यक्षिणी

किस यक्षिणी (Yakshini) की साधना से क्या फल मिल सकता है

सुर सुन्दरी यक्षिणी

यह यक्षिणी सिद्ध होने के बाद साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है।

मनोहारिणी यक्षिणी

ये यक्षिणी सिद्ध होने पर साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहक बना देती है, कि हर व्यक्ति उसके सम्मोहन पाश में बंध जाता है।

कनकावती यक्षिणी

कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने पर साधक में तेजस्विता आ जाती है। यह साधक की हर मनोकामना को पूरा करने मे सहायक होती है।

कामेश्वरी यक्षिणी

यह साधक को पौरुष प्रदान करती है और सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है।

रति प्रिया यक्षिणी

साधक और साधिका यदि संयमित होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य मिलता है।

पद्मिनी यक्षिणी

यह अपने साधक को आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है और हमेशा उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति कि और अग्रसर करती है।

नटी यक्षिणी

नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था।यह अपने साधक कि पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है।

अनुरागिणी यक्षिणी

साधक पर प्रसन्न होने पर उसे नित्य धन, मान, यश आदि प्रदान करती है और साधक की इच्छा होने पर सहायता करती है।

यक्षिणी साधना – यक्षिणियों के नाम एवं मंत्र

भगवान शिव ने लंकापती रावण को जो तंत्रज्ञान दिया , उसमेंसे ये साधनाएं शीघ्र सिद्धि प्रदान करने वाली है ।

अन्य यक्षिणियों के नाम एवं मंत्र

विद्या यक्षिणी – ह्रीं वेदमातृभ्यः स्वाहा ।

कुबेर यक्षिणी – ॐ कुबेर यक्षिण्यै धनधान्यस्वामिन्यै धन – धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा ।

जनरंजिनी यक्षिणी – ॐ क्लीं जनरंजिनी स्वाहा ।

चंद्रिका यक्षिणी – ॐ ह्रीं चंद्रिके हंसः क्लीं स्वाहा ।

घंटाकर्णी यक्षिणी – ॐ पुरं क्षोभय भगवति गंभीर स्वरे क्लैं स्वाहा ।

शंखिनी यक्षिणी – ॐ शंखधारिणी शंखाभरणे ह्रां ह्रीं क्लीं क्लीं श्रीं स्वाहा ।

कालकर्णी यक्षिणी – ॐ क्लौं कालकर्णिके ठः ठः स्वाहा ।

विशाला यक्षिणी – ॐ ऐं विशाले ह्रां ह्रीं क्लीं स्वाहा ।

मदना यक्षिणी – ॐ मदने मदने देवि ममालिंगय संगं देहि देहि श्रीः स्वाहा ।

श्मशानी यक्षिणी – ॐ हूं ह्रीं स्फूं स्मशानवासिनि श्मशाने स्वाहा ।

महामाया यक्षिणी – ॐ ह्रीं महामाये हुं फट् स्वाहा ।

भिक्षिणी यक्षिणी – ॐ ऐं महानादे भीक्षिणी ह्रां ह्रीं स्वाहा ।

माहेन्द्री यक्षिणी – ॐ ऐं क्लीं ऐन्द्रि माहेन्द्रि कुलुकुलु चुलुचुलु हंसः स्वाहा ।

विकला यक्षिणी – ॐ विकले ऐं ह्रीं श्रीं क्लैं स्वाहा ।

कपालिनी यक्षिणी – ॐ ऐं कपालिनी ह्रां ह्रीं क्लीं क्लैं क्लौं हससकल ह्रीं फट् स्वाहा ।

सुलोचना यक्षिणी – ॐ क्लीं सुलोचने देवि स्वाहा ।

पदमिनी यक्षिणी – ॐ ह्रीं आगच्छ पदमिनि वल्लभे स्वाहा ।

कामेश्वरी यक्षिणी – ॐ ह्रीं आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा ।

मानिनी यक्षिणी – ॐ ऐं मानिनि ह्रीं एहि एहि सुंदरि हस हसमिह संगमिह स्वाहा ।

शतपत्रिका यक्षिणी – ॐ ह्रां शतपत्रिके ह्रां ह्रीं श्रीं स्वाहा ।

मदनमेखला यक्षिणी – ॐ क्रों मदनमेखले नमः स्वाहा ।

प्रमदा यक्षिणी – ॐ ह्रीं प्रमदे स्वाहा ।

विलासिनी यक्षिणी – ॐ विरुपाक्षविलासिनी आगच्छागच्छ ह्रीं प्रिया मे भव क्लैं स्वाहा ।

मनोहरा यक्षिणी – ॐ ह्रीं आगच्छ मनोहरे स्वाहा ।

अनुरागिणी यक्षिणी – ॐ ह्रीं आगच्छानुरागिणी मैथुनप्रिये स्वाहा ।

चंद्रद्रवा यक्षिणी – ॐ ह्रीं नमश्चंद्रद्रवे कर्णाकर्णकारणे स्वाहा ।

विभ्रमा यक्षिणी – ॐ ह्रीं विभ्रमरुपे विभ्रमं कुरु कुरु एहि एहि भगवति स्वाहा ।

वट यक्षिणी – ॐ एहि एहि यक्षि यक्षि महायक्षि वटवृक्ष निवासिनी शीघ्रं मे सर्व सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा ।

सुरसुंदरी यक्षिणी – ॐ आगच्छ सुरसुंदरि स्वाहा ।

कनकावती यक्षिणी – ॐ कनकावति मैथुनप्रिये स्वाहा ।

इन सभी यक्षिणियों मे अपार क्षमता है । अपने उपासक को प्रसन्न होने पर ये कुछ भी प्रदान कर सकती हैं । भौतिक सिद्धि एवं समृद्धि के लिए तथा अन्य अनेक समस्याओं के समाधान के निमित्त भी यक्षिणी – साधना निश्चित रुपेण फलदायी होती है । किन्तु एकान्त – सेवन , नियमित जप , व्रत , उपवास , भूमि – शयन , साधनाभेद से जङ्गल – श्मशान अथवा निर्जन नदी – तट जैसे स्थान में जप , आहुति आदि प्रतिबन्धों का पालन करना अनिवार्य रहता है ।

आज के युग में इतनी जटिल साधना संभव नहीं रह गई है , फिर भी प्रसङ्गवश विषय की पूर्ति के लिए यहां कुछ प्रमुख यक्षिणियों के जप – मन्त्र दिए जा रहे हैं । आस्थावान और समर्थजन चाहें तो यक्षिणी – उपासना से लाभ उठा सकते हैं । यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि सदविषय के लिए की गई साधना का फल निरापद होता है , जबकि असद ( अभिचार – कर्म , पर – पीड़न , पर – शोषण आदि ) के उद्देश्य से की गई साधना – कालान्तर में साधक को कष्ट पहुंचाती है।

साधना विधि

यदि यक्षिणी का चित्र , प्रतिमा अथवा यन्त्र प्राप्त न हो सके तो भोजपत्र पर लाल चन्दन से अनार की कलम द्वारा किसी शुभ मुहूर्त्त में उस अभीष्ट यक्षिणी का नाम लिखकर उसे आसन पर प्रतिष्ठित करके उसी की पूजा करनी चाहिए । यहां जिन प्रमुख यक्षिणियों के मन्त्र लिखे जा रहे हैं , उनमें साधक जन अपनी निष्ठा , क्षमता और सुविधा के अनुसार उनमें से किसी भी एक की आराधना कर सकते हैं । स्मरण रहे कि यक्षिणी – साधना घर में नहीं , बाहर एकान्त में करने क विधान हैं । एकान्त – वन , वट वृक्ष के नीचे , श्मशान , मन्दिर , वाटिका , नगर – द्वार जैसे स्थान इस साधना के लिए विशेष उपयुक्त माने गए हैं।

साधक को चाहिए कि वह निश्चित स्थान पर नित्य रात्रि के समय जाकर शुद्ध आसन पर बैठे और पश्चिम की और मुख करके भोजपत्र पर अङ्कित यक्षिणीचित्र ( अथवा नाम ) की धूप – दीप से पूजा करके मन्त्र – जप प्रारम्भ करे । जप समाप्त होने पर वहीं सो जाए।

साधना – काल में काम – क्रोध से परे और व्रत , उपवास तथा संयम के साथ रहना चाहिए । जप आरम्भ करने से पूर्व जो संख्या जैसे निश्चित की जाए , उसे उसी विधि से पूरी करनी चाहिए । जैसे किसी साधक ने एक लाख जप का सङ्कल्प किया है और नित्य पचास माला मन्त्र जपता है तो उसे दस दिन में अपनी जपसंख्या पूरी करनी होगी । जप – संख्या पूरी हो जाने पर कम एक सौ आठ बार आहुति देकर ( वही जप – मन्त्र पढ़ते हुए ) हवन करना चाहिए । हवन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री कई प्रकार की होती है । यदि कुछ नहो सके तो काले तिल , घी और गुड़ का मिश्रण भी प्रयुक्त किया जा सकता है । हवन के पश्चात् कम से कम एक कुमारी कन्या को भोजन – वस्त्र और दक्षिणा भी देनी चाहिए । साधनाकाल में किसी प्रकार की अलौकिक अनुभूति हो तो उसका प्रचार न करके चुपचाप उसी आराध्य यक्षिणी से निवेदन करना उचित होता है।

- Related Articles -
Pardeep Patelhttps://pardeeppatel.com/
Hi!, I am Pardeep Patel, an Indian passport holder. I completed my M-Tech (Computer Science) in 2016. I love to travel, eat different foods from various cuisines, experience different cultures, make new friends and meet other.

Related Stories

Discover

Pachmarhi – Exploring the Queen of Satpura

Nestled amidst the rugged peaks of the Satpura range lies Pachmarhi, a tranquil hill...

Sun, Sand, and Serenity: A Week in Goa

Sun, Sand, and Serenity: A Week in Goa encapsulates the essence of our journey...

Kedarnath Trek and Yatra – Where, What & How?...

Embarking on a pilgrimage to Kedarnath is a journey that transcends mere physical travel—it's...

Adi Kailash Journey: Trekking to the Divine Abode of...

Nestled amidst the serene landscapes of the Kumaon region in Uttarakhand, Adi Kailash emerges...

Into the Heart of Kailash Manasarovar: A Journey of...

Nestled amidst the towering peaks of the Himalayas lies Kailash Manasarovar, a place of...

Journey to the Five Kailash Peaks – Discovering the...

Embark on a spiritual odyssey to the heart of the Himalayas, where the ethereal...

Popular Categories

Comments

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here